प्यार में शारीरिक संबंधों को नहीं माना जाएगा गुनाह : इलाहाबाद उच्च न्यायालय

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक लंबे समय तक चले रोमांटिक रिश्ते में सहमति से बने शारीरिक संबंधों को अपराध नहीं माना जा सकता।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक लंबे समय तक चले रोमांटिक रिश्ते में सहमति से बने शारीरिक संबंधों को अपराध नहीं माना जा सकता. यह फैसला उन मामलों में काफी राहत देगा, जहां कपल्स के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बनने के बावजूद, किसी एक पार्टनर द्वारा बाद में शादी का वादा न निभाने पर, दूसरे पार्टनर के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करा दिया जाता है।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सहमति से बने शारीरिक संबंधों को अपराध माना जाना तभी न्यायोचित होगा। जब किसी एक पार्टनर द्वारा दूसरे पार्टनर को किसी तरह से धोखा दिया गया हो या उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया हो। कोर्ट ने यह भी कहा है कि सहमति से बने शारीरिक संबंधों को अपराध मानना ​​लैंगिक समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह फैसला काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह महिलाओं की सुरक्षा और लैंगिक समानता के अधिकारों की रक्षा करता है. इस फैसले से उन महिलाओं को राहत मिलेगी, जिनके खिलाफ सहमति से बने शारीरिक संबंधों के बाद, उनके पार्टनर द्वारा शादी का वादा न निभाने पर, बलात्कार के मामले दर्ज कराए गए हैं.

इस फैसले के बाद, यह उम्मीद की जा रही है कि पुलिस और न्यायपालिका दोनों ही इस मामले में अधिक संवेदनशीलता दिखाएंगे और इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि सहमति से बने शारीरिक संबंधों के मामलों में महिलाओं के खिलाफ झूठे केस दर्ज न हों।

जमीनी रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का समाज में भी स्वागत किया जा रहा है. महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन इस फैसले को महिलाओं की सुरक्षा और लैंगिक समानता के अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम बता रहे हैं.

हालांकि, कुछ लोग इस फैसले की आलोचना भी कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस फैसले से महिलाओं की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और उनका शोषण किया जा सकता है.

हालांकि, अधिकांश लोग इस फैसले का समर्थन कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस फैसले से सहमति से बने शारीरिक संबंधों के बाद, महिलाओं के खिलाफ झूठे मामले दर्ज होने पर रोक लगेगी और महिलाओं को न्याय मिल सकेगा.

निष्कर्ष

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह फैसला महिलाओं की सुरक्षा और लैंगिक समानता के अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम है. यह फैसला उन महिलाओं को राहत देगा, जिनके खिलाफ सहमति से बने शारीरिक संबंधों के बाद, उनके पार्टनर द्वारा शादी का वादा न निभाने पर, बलात्कार के मामले दर्ज कराए गए हैं.

हालांकि, इस फैसले के बाद भी, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि महिलाओं का शोषण न हो और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.

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